संकलन और संपादन – निकिता देवासे
चक्रिघाट – Alumni बच्चों में भी सीखने की जिज्ञासा
– कोमल गौतम

मैं लंबे समय से प्राथमिक बच्चों को पढ़ाती रही हूँ। लेकिन अब मुझे Alumni बच्चों को पढ़ाना था, यानी उन बच्चों को जिन्हें पहले पढ़ाया गया था, लेकिन अब कुछ समय के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी।
शुरुआत में मन में थोड़ी डर की भावना थी। इतने बड़े बच्चों को पढ़ाते समय आत्मविश्वास कम लग रहा था और मैं खुद से सवाल कर रही थी, “मैं उन्हें क्या पढ़ाऊँगी? कैसे पढ़ाऊँगी?”
जब मैंने वाली, कल्लू, जीवन, महेश, किसन, और हंसा को पढ़ाना शुरू किया, तब मेरे मन की सारी शंकाएँ कम होने लगीं। जैसे-जैसे मैंने उन्हें पढ़ाना शुरू किया, वैसे-वैसे उनके साथ संवाद और विश्वास का संबंध बनना शुरू हो गया।
मैंने सबसे पहले उनके कौशल का स्तर देखा। कुछ की पठन-पाठन क्षमता अच्छी थी, और सभी को अंग्रेज़ी सीखनी थी। वे पढ़ने, लिखने और बोलने के लिए उत्सुक दिख रहे थे। शुरुआत में उन्हें पढ़ाते समय मुझे बहुत चिंता होती थी, लेकिन धीरे-धीरे वे खुद से मेरे साथ संवाद करने लगे। अब वे खुद अपने अनुभव और विचार मेरे साथ साझा करते हैं।
केवल कक्षा में पढ़ना ही नहीं, बल्कि वे अन्य गतिविधियों में भी भाग लेने लगे। झोपड़ी के लिए पोस्टर बनाना हो, माता-पिता की सभा में अपनी राय रखना हो या अन्य समुदाय गतिविधियाँ, वे हर जगह सक्रिय रहते हैं। उनके सहभागिता और आत्मविश्वास से दिखता है कि उनकी पढ़ाई की जिज्ञासा अभी भी कायम है।
आज उनकी कक्षाएँ चल रही हैं। अगर उन्हें समय न भी मिले, वे खुद आकर कहते हैं, “दीदी, अभी हमको पढ़ाओ।” उनके मन में सीखने की उत्सुकता अब भी उतनी ही प्रबल है।
इससे मुझे यह महसूस हुआ कि बच्चों की जिज्ञासा और सीखने की इच्छा सही मार्गदर्शन मिलने पर कितनी प्रभावी हो सकती है। छोटे प्रयास और विश्वास के रिश्ते से बच्चों की प्रगति दिखाई देती है, और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आने लगते हैं।
असोला – छोटे शिक्षक, बड़ी तैयारी
-प्राची बोरेकर

हर साल की तरह, इस साल भी हमारे स्कूल में शिक्षक दिवस मनाया गया। तय समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ, और हमारे विद्यार्थियों ने पूरे मन से भाग लिया।
उनके चेहरों पर उत्साह और खुशी देखकर मन वास्तव में आनंद से भर गया।
हर किसी ने अपना विषय चुना और सुंदर lesson plan तैयार करके लाया। तैयारी में उन्होंने बहुत मेहनत की थी। उनकी बोलने की शैली, हावभाव और पढ़ाने के तरीके में आत्मविश्वास स्पष्ट रूप से नजर आ रहा था।
उस दिन बच्चे सच में शिक्षक बन गए थे। कार्यक्रम के पहले ही दिन कई विद्यार्थियों ने मुझसे पूछा, “मैडम, आप activities कैसे तैयार करती हैं? ये आप कहाँ से लाती हैं?”
तब मैंने उन्हें विभिन्न resources के बारे में बताया, उनके नाम भी बताए, और ये भी समझाया कि इन resources को कैसे खोजा और इस्तेमाल किया जाए।
उन्होंने तय किया था कि क्या पढ़ाना है और कैसे पढ़ाना है, और उन्होंने इसे सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। किसी ने उदाहरण दिए, किसी ने छोटी activity करवाई, किसी ने कहानी सुनाई, जिससे माहौल शिक्षण और हँसी से भरपूर बन गया।
जब बच्चों ने खुद को “मैं वर्षा मैडम”, “मैं प्राची मैडम”, “आदित्य सर”, “गोलू सर”, “कंचन मैडम”, “जानवी मैडम” कहकर पेश किया, तो उस पल की खूबसूरती शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। उनके आँखों में आत्मविश्वास उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था।
बच्चों ने शिक्षक की भूमिका आत्मविश्वास के साथ निभाई। उन्होंने पहले तय किया कि क्या पढ़ाना है, और फिर उसे व्यवस्थित रूप से पढ़ाया। हर किसी ने अलग-अलग तरीके से पढ़ाने की कोशिश की, कुछ ने उदाहरण दिए, कुछ ने छोटी-छोटी activities आयोजित की, जिससे दिन सभी के लिए बहुत इंटरैक्टिव और मजेदार बन गया।
उस दिन यह महसूस हुआ कि जब बच्चों को जिम्मेदारी और अवसर दिया जाता है, तो वे केवल सीखते ही नहीं, बल्कि पढ़ाते समय अपने भीतर नया आत्मविश्वास भी खोजते हैं।
शिक्षक दिवस केवल शिक्षकों के लिए नहीं था, बल्कि यह सीखने और पढ़ाने की दोनों के लिए एक सुंदर अनुभव था।
सोनखांब – पालक सभा: स्वप्नों को पंख देने वाला अनुभव
– प्रीतम नेहारे

आज की पालक सभा बहुत ही अलग तरीके से संपन्न हुई। पालक सभा में यह भावना नजर आई कि बच्चे नए पंख लेकर उड़ने को तैयार हैं। बच्चों को ऊँचे आकाश तक पहुँचने का अवसर मिला।
भविष्य में उन्हें क्या करना है, वे क्या बनना चाहते हैं इस अवसर के माध्यम से प्रत्येक बच्चे ने अपने सपनों के कदम रखे। उन्होंने अपनी राह और विचारों को सुंदर शब्दों में प्रस्तुत किया।
सपने केवल बच्चों के नहीं हैं; माता-पिता भी देखते हैं। पालकों के साथ मिलकर यह सभा बच्चों को मार्गदर्शन देने वाली साबित हुई कि उन्हें क्या करना है, क्या बनना है।
पालक सभा का उद्देश्य केवल बच्चों के सपनों को देखना नहीं था, बल्कि उन्हें नई पहचान, नए विचार और नए सपने देना था। बच्चों में क्या परिवर्तन हुआ है, उन्हें अब किस चीज़ की जरूरत है, कहाँ सुधार की आवश्यकता है और कहाँ कदम रखना चाहिए इन अनेक मुद्दों पर चर्चा हुई।
मागील वर्ष से मीटर के लिए कुछ प्रक्रियाएँ रुकी हुई थीं, लेकिन अंततः उसे हल मिला। आज हर पालक मीटर के लिए पैसे देने के लिए तैयार हुए और हर किसी ने स्वयं कदम उठाया।
बच्चों ने अपने सपनों की प्रस्तुति दी। हर पालक अपने बच्चों के साथ उपस्थित था। आमतौर पर केवल दीदी आती थीं, लेकिन इस बार दोनों माता-पिता उपस्थित थे, जो एक बड़ी बात थी।
रतन दीदी ने गुजराती में बच्चों के लिए सपने लिखे। उन्होंने देखा कि बच्चों को क्या बनना है या उनके माता-पिता की क्या अपेक्षाएँ हैं। माता-पिता के सपने भी प्रेरणादायक साबित हुए। ऊँची उड़ान भर रहे बच्चों को अपने माता-पिता की उम्मीदों को पूरा करने का अवसर मिला।
बेडे पर जो पढ़ सकते थे, उन्होंने बच्चों के लिखे हुए सपने पढ़े और एक-दूसरे को बताया कि किसी का सपना इंजीनियर बनना है, किसी का घर के व्यापार में हाथ बटाना है।
गौरी के माध्यम से बच्चों को मार्गदर्शन मिला।
- अजय वकील बनने का सपना देखता है।
- विक्रम डॉक्टर बनकर बेडे के लोगों की मदद करेगा।
- तेजल पुलिस बनना चाहती है।
- जय आर्मी में जाने का सपना देखता है।
इस सभा में बच्चों और पालकों को उनके सपनों के लिए प्रेरणा मिली और उन्हें आगे बढ़ने का हौसला मिला।
ठणठण – सीखने का उत्साह
– मयूर गेडाम

मैं भरवाड समुदाय के बच्चों को पढ़ाने का काम पिछले कुछ महीनों से कर रहा हूँ। शुरुआत में मुझे लगता था कि बच्चों को पढ़ाना बहुत आसान काम है।
मैं उन्हें फलक पर लिखकर दिखाऊँगा, वे जल्दी सीखेंगे, पढ़ेंगे और लिखेंगे। लेकिन वास्तविकता में यह उतना आसान नहीं था। क्योंकि इन बच्चों का जीवन बिल्कुल अलग है। स्कूल और पढ़ाई उनके लिए एक अलग ही दुनिया है। काम की व्यस्तता के बीच भी उन्हें सीखना होता है और नई चीज़ें जाननी होती हैं।
मैं प्राथमिक कक्षा के बच्चों को पढ़ाता हूँ, और मेरी कक्षा में ज्यादातर लड़कियाँ हैं। इन लड़कियों को रोज़ कुछ काम होते हैं, और उन कामों के कारण नियमित रूप से कक्षा में आना मुश्किल होता है। क्योंकि “माँ गाँव गई हैं, इसलिए भाई-बहनों का ध्यान रखना पड़ता है।” इस तरह के कारण लड़कियाँ बताती थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि जो लड़कियाँ नियमित आती थीं, वे भी अब नहीं आ रही थीं। तब मुझे लगा कि इस अनुपस्थिति का असर नियमित आने वाले बच्चों पर पड़ रहा है।
इस समस्या का समाधान खोजने के लिए मैंने प्रयास किया। मैं रोज़ उनके घर जाकर उन्हें समझाने लगा कि लड़कियों को पढ़ाई की जरूरत क्यों है। विभिन्न प्रयासों के माध्यम से मैंने उन्हें समझाया। साथ ही कक्षा में मैंने उनके लेवल और रुचि के अनुसार क्लास प्लान तैयार करना शुरू किया। ऐसी activities बनाई जो उन्हें पसंद आएं और जिनका वास्तविक जीवन से कनेक्शन हो। इससे उनमें काफी बदलाव दिखाई देने लगा।
इसके परिणामस्वरूप सभी लड़कियाँ पढ़ने लगीं और इतना उत्साहपूर्वक घर जाकर कहतीं, आज हमने यह सीखा, आज हमने यह गेम खेला।” उन्हें मेरी पढ़ाने की पद्धति पसंद आने लगी। इससे वे अपने काम और पढ़ाई को सही संतुलन के साथ करने लगीं। अब वे नियमित आती हैं और पढ़ाई का आनंद लेती हैं।
उनकी आँखों में जो उत्साह देखा, उससे मुझे समझ में आया कि सीखने की इच्छा उनमें कितनी प्रबल है। जब वे कोई शब्द सही पढ़ती हैं या कोई उदाहरण हल करती हैं, तो उनके चेहरे पर जो खुशी झलकती है, वह अत्यंत बड़ी होती है।