Photo bulletin March 2025
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संकलन आणि संपादन  – निकिता देवासे 

चक्रीघाट –  जंगल में क्लास

कोमल गौतम

चक्रिघाट बेड़ा दिवाली के समय स्थानांतरित हुआ और तभी से हम सप्ताह में एक बार उनके बेड़े पर जाकर मुलाकात करते हैं। इस मुलाकात में हम बच्चों के लिए स्टोरी बुक्स, वर्कशीट्स और शैक्षणिक सामग्री लेकर जाते हैं।

इन संसाधनों की मदद से हम उन्हें पढ़ाने की कोशिश करते हैं। लेकिन, हम रोज़ उनके बेड़े पर नहीं जा सकते क्योंकि उनके बेड़े बहुत दूर होते हैं, जैसे कि चंद्रपुर, भंडारा के जंगलों में होते है। इतनी दूर के बेड़ों तक पहुँचना बड़ाही कठिन और चुनौतीपूर्ण होता है।

सब बेड़े स्थलांतरित होने से पहले हमें बच्चों की बेसलाईन असिस्मेंट लेनी पड़ती है।  यानी हमारे बच्चों का वर्तमान अध्ययन स्तर क्या है, यह जांचना बहुत ज़रूरी होता है। इस मूल्यांकन से हमें यह समझ में आता है कि स्थानांतरण के कारण उनकी शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा है और उनकी शैक्षणिक प्रगति कहाँ तक पहुँची है।

स्थानांतरण के कारण बच्चों की शिक्षा के प्रती रुचि कम होती जाती है।  जिससे उनकी पढ़ाई का स्तर धीरे-धीरे कम होता जाता है। फिर भी, उनकी प्रगति की जांच के लिए असिस्मेंट लेना बेहद ज़रूरी होता है। यह मूल्यांकन किए बिना हमें उनकी वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा नहीं लगाय जा सकता। इसी उद्देश्य से हम उनके बेड़े पर पहुँचे। 

बेड़े पर पहुँचने के बाद, बच्चों को एक साथ इकट्ठा करना बहुत मुश्किल काम था। स्थालानांतरित जीवनशैली के कारण बच्चे अलग-अलग जगहों पर फैले हुए थे। हमने सभी बच्चों को एक साथ बुलाया। सभी बच्चे इकट्ठा हुए तो कुछ बच्चे बड़े पेड़ पर चढ़ गए, उनके साथ छोटे बच्चे भी उत्साह से पेड़ पर चढ़ गए और उन्होंने खूब मस्ती की। थोड़ी देर खेलने के बाद उन्होंने हमें पास के इलाके में घुमाया। वह जगह हमारे लिए नई थी और बच्चों को भी हमें अपनी जगह दिखाकर खुशी हो रही थी। घूमने के बाद, हम सभी बच्चों को एक बड़े पेड़ की छांव में ले गए और वहीं पर बच्चो का क्लास और असिस्मेंट लेने का निर्णय लिया।

पेड़ की छांव में लिया गया वह क्लास हमारे और बच्चों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था। बच्चों ने हमारा पूरा साथ दिया, समझदारी दिखाई और काफी देर तक एक ही जगह ध्यानपूर्वक बैठे रहे। उनके उत्साह से ऐसा लग रहा था जैसे उनका रोज़ का ही क्लास चल रहा हो। कभी-कभी उनको  एक ही जगह पर बैठना मुश्किल होता है।  लेकिन उस दिन वे बहुत शांत थे और सब ध्यान से सुन रहे थे ।

बच्चों ने असिस्मेंट में दिए गए विभिन्न प्रश्नों पर ध्यानपूर्वक काम किया। कुछ बच्चों ने एक-दूसरे की मदद की, तो कुछ ने स्वयं ही सवाल हल करने की कोशिश की। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने खूब मज़ा भी किया। उनका हंसना, खेलना और पढ़ाई में दिलचस्पी लेना देखकर हमें बहुत खुशी हुई। यह  क्लास हमारे लिए सीखने और सिखाने का एक महत्वपूर्ण अनुभव बना।

चक्रिघाट बेड़े पर पहले जैसा क्लास हम स्थानांतरित बेड़े पर भी ले सके, यह हमारे लिए बहुत खुशी की बात थी। बच्चों ने पढ़ाई में रुचि दिखाई और उनका सक्रिय योगदान उत्साहजनक था। यह केवल एक क्लास नहीं था, बल्कि यह प्रमाण था कि स्थानांतरित जीवनशैली के बावजूद शिक्षा की लौ जलती रह सकती है। इस तरह से हमने ‘फिर एक बार क्लास’ लेकर बच्चों की शिक्षा की ज्योत जलाए रखने की कोशिश की।

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खेड़ी – सर से बात मैं करूंगी

पल्लवी शंभरकर 

जब बेड़ा ठणठण से खेडी स्थलांतर हुआ था, तब बच्चों की एडमिशन पांढरकवड़ा की स्कूल में की गई थी। बच्चे शुरुआती दिनों में बहुत अच्छे से और रोजाना स्कूल जाने लगे थे।

लेकिन कुछ दिनों बाद बेड़े पर शादी थी, और बच्चों ने शादी के लिए एक हफ्ते की छुट्टी ली। फिर वे स्कूल नहीं गए। स्कुल जाने के लिये बार-बार बच्चों से बात करती थी। दीदी और भैय्या से भी बात की। लेकिन बच्चों को पैदल जाना पड़ता था और कभी-कभी साथ में कोई नहीं होता था इस वजह से वे जाने के लिए मना कर देते थे। और ऐसे ही दिन गुजरते गए।

अभी 2 हफ्ते पहले रामा, आशा, और काजल मेरे पास आए और बोले, “मैम, हमें पांढरकवड़ा स्कूल जाना है, तो आप सर से बात कीजिए।” लेकिन इससे पहले मैंने तीन-चार बार सर से बात की थी कि बच्चे स्कूल आने वाले हैं, लेकिन बच्चे गए ही नहीं। इसलिए फिर मैंने उन्हें कहा, “आप खुद ही बात करो और स्कूल जाओ। अगर सर कुछ बोलते हैं, या आने के लिए मना करते हैं, तो फिर मैं बात करूंगी।”

रामा स्कूल में बात करने के लिए डर रहा था, लेकिन आशा बोली, “सर से बात मैं करूंगी।” आशा का यह आत्मविश्वास देखकर अच्छा लगा। फिर बच्चे स्कूल गये। पहले कुछ दिन उन्हें अलग बैठाया गया, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें भी बाकी बच्चों के साथ एक ही क्लास में बिठाया गया। नए दोस्त बनाना और उनके साथ खेलना उन्हें बहुत अच्छा लागने  लगा।

जब वे स्कूल से आते थे, तो उनके पास ढेर सारी बातें होती थीं जो खत्म होने का नाम नहीं लेती थीं। “आज सर ने ऐसे बोला, मैम ने वैसे बोला,हेमाने सर को ये पूछा, यह अच्छा लगा, वह बुरा लगा…” और भी बहुत कुछ। सर और मैम बच्चों को बहुत सपोर्ट करते हैं, और बच्चों को स्कूल जाने में अब अच्छा लगता है।

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सोनखांब गौरीची जिद्द, तेजलचं वाचन

प्रीतम नेहारे 

गौरी आणि तेजल यांचा बेडा स्थलांतरित झाला असला तरी त्यांचं शिक्षण पुस्तकं, वर्कशीट आणि सततच्या अभ्यासाच्या माध्यमातून सुरू आहे. गौरी आपल्या अभ्यासासोबतच आपल्या भावंडांनाही शिकवते.

ती त्यांना झाडाखाली बसवून अभ्यास घेते. जेव्हा मी बेड्यावर जातो, तेव्हा तेजल आणि मयूर नेहमी अभ्यासात मग्न असतात.

एक महत्त्वाची गोष्ट म्हणजे तेजलच्या वाचनात खूप बदल झाला आहे. आता ती जोडशब्द वाचू शकते आणि तिचं वाचन सतत सुरू असतं. ती नवनवीन पुस्तकं वाचते आणि जे काही शिकते ते आपल्या आई-वडिलांना उत्साहाने सांगते. गौरी आणि तेजल यांना शिक्षणाची आवड आहे, आणि जरी त्या जंगलात फिरत असल्या तरी त्यांचा शिक्षणाचा प्रवास थांबलेला नाही.

गौरी केवळ स्वतः शिकत नाही, तर ती आपल्या लहान भावंडांना शिकवते, त्यांच्यासोबत खेळते आणि आपल्या वडिलांना नवीन गोष्टी समजावून सांगते. पुस्तके वाचून आणि शिकून त्या समाजात सकारात्मक बदल घडवत आहेत. गौरीच्या वाचनामुळे तिच्या विचारशक्तीचा विकास होत आहे आणि ती नवनवीन गोष्टी जाणून घेत आहेत. 

आज बेडा भटकंतीवर आहे तरी गौरीमुळे मयूर आणि तेजल यांचा शिकण्याचा प्रवास थांबलेला नाही .मी प्रत्येक शुक्रवारी बेड्याला भेट द्यायला जातो. मुलं नेहमी शुक्रवारच्या दिवसाची आतुरतेने वाट पाहतात, कारण त्या दिवशी मी त्यांना नवीन पुस्तकं आणि अभ्यासपत्रिका देतो. गौरीला शिक्षणाची खूप आवड आहे. ती आपल्या वेळेचं योग्य नियोजन करून शिकते. काही प्रश्न किंवा अडचणी आल्यास ती माझ्याशी संवाद साधते आणि शिकण्याचा प्रवाह  सुरू ठेवते.

गौरीला वैज्ञानिक गोष्टी जाणून घेण्याची आवड निर्माण झाली आहे. एकदा मी तिथे गेलो असताना तिला प्रश्न पडला होता की, “चंद्र दिवसा का दिसत नाही आणि रात्रीच का अधिक स्पष्ट दिसतो?” आणि प्रत्येक शुक्रवारच्या तिचा माझ्यासाठी नवीन  प्रश्न असतो. तिच्या अशा प्रश्नांना मी प्रयोगांद्वारे किंवा व्हिडिओच्या माध्यमातून समजावून सांगतो. तिच्या मनातील उत्सुकता आणि शिकण्याची जिद्द तिच्या उज्ज्वल भविष्याची साक्ष देते. या जिद्दीमुळे ती भविष्यात नक्कीच मोठी झेप घेईल, यात शंका नाही.

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बोथली – आत्मचिंतन की ताकद

जनक सभाड 

शोभा प्री-प्राइमरी की स्टूडेंट है। उसका स्वभाव बहुत चंचल है।शोभा मेरे लिए किसी हाइलाइट से कम नहीं है। मैं जब भी क्लास लेती थी, तो शोभा मुझे बहुत परेशान करती थी क्लास में। लेकिन पिछले कुछ दिनों में उसके अंदर इतना बड़ा परिवर्तन हुआ है कि मैं चौंकी हूं।


क्लास के बीच में हमेशा उसका कुछ ना कुछ रहता था, “काकी, मुझे खाना खाने जाना है,” “काकी, मुझे पानी पीने जाना है,” “क्लास के बीच में सो जाना,” या कभी कहती, “मुझे पढ़ना नहीं है।” इस तरह शोभा का हमेशा कुछ ना कुछ रहता था।

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे शोभा के साथ क्या करना चाहिए। फिर मैंने उसे जैसे चाहे, वैसे करने दिया, लेकिन मेरी हर क्लास में उसे शामिल किया। जितना मन होता, वह क्लास में रहती थी, फिर वह चली जाती। लेकिन इसी बीच मैं उससे बहुत सारे प्रश्न पूछती थी, जैसे “आज हमने क्लास में क्या किया?” “तुम्हें कुछ समझ में आया?” यह सारे सवाल उसके साथ रोज चलते थे।

शोभा ने धीरे-धीरे अपने स्वभाव में सुधार लाने के लिए मेहनत शुरू की। पहले वह ध्यान से बैठने के बजाय हमेशा इधर-उधर भागती रहती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे उसकी आदतें बदलने लगीं। उसे अपनी क्लास में भाग लेने की खुशी होने लगी। और इसका सबसे बड़ा उदाहरण तब मिला जब वह बिना किसी बहाने के पूरी क्लास में सक्रिय रूप से शामिल होने लगी।

अब मुझे उसके व्यवहार में बहुत बड़ा बदलाव दिख रहा है। अब शोभा न तो क्लास में सोने के लिए कहती है, न ही मुझे खाना खाने या पानी पीने जाने का कोई बहाना बनाती है। अब वह हर एक्टिविटी में सक्रिय रूप से भाग लेती है। शोभा एक से दस तक काउंटिंग बहुत अच्छे से कर लेती है, और बीच-बीच में मुझे बोलती है, “काकी, चार कितने होते हैं? तीन कितने होते हैं? गिन के बताऊं क्या?” उसे कई सारे अक्षरों की भी पहचान हो गई है। उसे आकार भी बहुत अच्छे से आते हैं, और वह सभी आकारों के नाम बताती है और बाद में बाकी लकड़ियों को बना के दिखाती है।

शोभा में खुद पर गर्व महसूस होने लगा है, क्योंकि अब वह उन चीजों को करने में सक्षम हो गई है जो पहले उसे मुश्किल लगती थीं। अब वह अपनी उपलब्धियों पर खुशी जाहिर करती है और अपनी छोटी-छोटी सफलताओं पर गर्व महसूस करती है।

पहले उसे क्लास में हो रही गतिविधियों से कोई मतलब नहीं था, लेकिन अब क्लास में सबसे ज्यादा सवाल उसी के होते हैं। शोभा में बहुत जल्दी कई सारे परिवर्तन देखने को मिले। उसकी मेहनत और संघर्ष ने उसे एक नई दिशा दी है, और अब वह एक समझदार और जिम्मेदार छात्रा बन चुकी है।

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